Hindi Poem from Avyakt murli. Murli se ek Kavita 11 December 1972. To read more Hindi poems written, visit Murli Poems page.
12-11-72 की अव्यक्त मुरली पर आधारित कविता *अलौकिक कर्म करने की कला* ✺ हर संकल्प और सेकेण्ड ईश्वरीय सेवा के सहयोग में लगाने से *कितनी श्रेष्ठ प्राप्ति होगी••••* ✺ ऐसे तो सहज ही बन जाते हैं, *सर्व स्नेही, सहयोगी, सर्वांश त्यागी वा सर्वत्यागी* ✺ पहले स्थिति थी वो ,वियोगी स्टेज, वियोगी के बाद *योगी बनते हैं••••* ✺ योगी के बाद सहयोगी बनते हैं,*लास्ट स्टेज पर सर्वत्यागी बनते हैं••••* ✺ अव्यक्तमूर्त बन अति न्यारे और अति प्यारे रहने के *अनुभवीमूर्त बन ही गये हो।••••* ✺ मालिक-बालक,का बेलेंस कर्मयोगी,कर्मातीत ,लग्न में मग्न रहने वाले *योगी भी बन ही गये हो••••* ✺ यात्रा में बीच-बीच में चट्टियां आती हैं, तो पता चलता है कि *कहा पहुचे ,और कितना बाक़ी है ••••* ✺ श्रेष्ठ आत्माएं, कर्मयोगी, निरंतर योगी, सहयोगी, राजयोगी - *हर कर्म की अलौकिक झांकी है ••••* ✺ कलाबाज का सर्कस मे हर कर्म *कला बन जाता है।••••* ✺ आपकी बुद्धि की कला, अलौकिक कर्म की कला ,सारे *विश्व की आत्माओं को रमाता है••••* ✺ बुद्धि की कला सर्व कलाओं को अपने में *भरपूर कर सकती है••••* ✺ देही-अभिमानी स्थिति सर्व विकारों को सहज ही *शान्त कर सकती ••••* ✺ जब युद्ध प्रारम्भ होता है तो अचानक आर्डर निकलते हैं, *घर छोड कर आओ ••••* ✺ बापदादा भी अचानक डायरेक्शन दें , देह-अभिमानी की स्थिति को छोड़ *देही-अभिमानी बन जाओ••••* ✺ योगी सदा हर सेकेण्ड, हर संकल्प, हर वचन, हर कर्म में *सहयोगी अवश्य होगा••••* ✺ और अनेक आत्माओं को अपने श्रेष्ठ भाग्य के आधार से भाग्यशाली बनाने के निमित्त होगा ••••* ओमशान्ति